छतरपुर। शहर की संस्कार वाटिका में चल रही श्रीमद् भक्तमाल की कथा के क्रम में बुधवार को कथा व्यास गोरी लाल कुंज के महंत परम रसिक संत पूज्य किशोर दास महाराज ने भक्ति रसिक मुरारी लाल की भक्ति की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि रसिक मुरारी लाल ऐसे भक्त थे जिन्होंने अपनी परम उदारता से पशु को भी भगवान की भक्ति में लीन कर दिया। उन्होंने कहा कि जो पशु को भगवान की भक्ति के लिए प्रेरित करता है वही परम उदार कहलाता है।
श्रीमद् भक्तमाल की कथा के माध्यम से कथाव्यास महाराजश्री  उन भक्तों के चरित्रों को कथाप्रेमियों तक पहुंचा रहे हैं जिन्होंने इसी कलयुग में अपनी भक्ति के सहारे ईश्वर से साक्षात्कार किया है। ऐसे ही भक्तों में एक भक्त है रसिक मुरारीलाल। नाभा स्वामी जी ने इनके चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि एक नवाब ने जब शक्ति से सनातन धर्म को कुचलने का प्रयास किया और मतवाले हाथी को रसिक मुरारीलाल जी को कुचलने के लिए भेजा तब परम संत रसिक मुरारीलाल महाराज ने बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़कर उस हाथी से मन ही मन संवाद करते हुए कहा कि जो आनंद ईश्वर की भक्ति में है वह इन व्यसनों में नहीं है। संत वाणी सुनकर मतवाला हाथी न केवल नतमस्तक हुआ बल्कि बिना एक पल गंवाए संत जी को प्रणाम कर वहां से निकल गया। महाराजश्री ने कहा कि मनुष्यों की अपेक्षा पशु को भक्ति का बोध कराना ही अति उदारता है। उन्होंने इसी क्रम में 12 दिवसीय दण्डोत्सव की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि संत श्यामानंद जी उन गलियों में झाडू लगाते थे जहां से श्री बिहारी जी व बिहारणी जी निकलते थे। झाडू लगाकर पूरा परिसर साफ-सुथरा रखने के कारण संत श्यामानंद जी को प्रियाजू की उदारता प्राप्त हुई और प्रियाजू ने उन्हें अपनी सहचरी बना लिया। भक्तमाल की कथा में न केवल शहर बल्कि आसपास से हजारों की तादाद में लोग कथा प्रांगण में उपस्थित हो रहे हैं।