छतरपुर। श्री कृष्णा विश्वविद्यालय के सभागार में बुंदेली लोक गायिका कविता शर्मा का विश्वविद्यालय के कुलाधिपति महोदय डॉ. बृजेन्द्र सिंह गौतम, चेयरमैन डॉ. पुष्पेंद्र सिंह गौतम ने उनका पुष्प गुच्छ भेंट कर अभिनंदन किया। मंचासीन अतिथियों ने सर्वप्रथम मां सरस्वती जी की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रज्जवलन कर कार्यक्रम का प्रारंभ किया।
कुलाधिपति महोदय डॉ. बृजेन्द्र सिंह गौतम ने अपने उद्धबोधन में कहा कि प्रतिभा किसी परिचय की मोहताज नही होती। श्री कृष्णा विश्वविद्यालय छतरपुर में पूर्व में आयेाजित बुंदेली समागम से कार्यक्रम की शुरूआत करने वालीं कविता शर्मा ने अपनी मातृभाषा बुंदेली को गायन के रूप में चुना और यह बुंदेली भाषा की मिठास ही है कि मात्र छ: माह की अवधि में ही कविता शर्मा बुंदेली लोकगीत गायन के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त कर बुंदेलखंड में ही नही बल्कि पूरे भारत में लोकप्रिय हो गईं। अपनी सुमधुर आवाज़ के जरिये बुंदेली लोकगीतों को जन-जन तक पहुँचाने का कविता जी का प्रयास युवा लोक कलाकारों के लिए प्रेरणादायी है। उज्जवल भविष्य के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ। दरअसल, लोक जीवन से जुड़े ये लोक गीत हमारी संस्कृति की ही संगीतमय अभिव्यक्ति हैं। इन गीतों के जरिए कोई भी इंसान जीवन से सीधे जुड़ जाता है, चाहे वह दुनिया के किसी कोने में हो। वह सहज ही पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना से सहज जुड़ जाते हैं। यही कारण है कि जिन फिल्मों में भी लोकाचार के दृश्य या गीत होते हैं, वो फिल्म हिट भी होते हैंए और सालों-सालों के बाद भी लोग उसे दर्शक याद रखते हैं। और इनको  हर पीढ़ी के दर्शक, श्रोता सुनते और सराहते है। बहरहाल हमें यह शहरी और गांव दोनों जीवन का आनंद लेने का सौभाग्य मिला। याद आता है, बचपन के वो दिन जब गांव में घर के आस-पास के घरों से सुबह-सुबह गीत मंगल के सुर कानों में गूंजने लगते थे। गेहूं को चक्की में पीसते हुए हमारी दादी अम्मा उन गीतों को गुनगुनाती थीं। उन दिनों तो यह सहज ही लगता था। पर आज गांव के वो गीत मौन हो गए हैं। लेकिन कविता शर्मा जी जैसे लोक गायकों ने उन्हें जीवंत कर दिया है।
विश्वविद्यालय के चेयरमैन डॉ. पुष्पेंद्र सिंह गौतम ने अपने उद्धबोधन में कहा कि श्री कृष्णा विश्वविद्यालय गुणवत्ता एवं रोजगारपरक शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ विद्यार्थियों में छुपी प्रतिभाओं को निखारने के प्रति भी दृढ़संकल्पित है। कला, साहित्य, संगीत एवं अन्य क्षेत्रों में हमारे विद्यार्थियेां को जिस कार्य में रूचि है उस क्षेत्र में उन्हें आगे बढऩे के लिए समय-समय पर कार्यक्रमों के माध्यम से मंच प्रदान किया जाता है। जिससे वह अपनी प्रतिभा को देश के कोने-कोने में पहुंचा सकें। वर्तमान समय में सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं ने अपनी प्रतिभा को प्रसारित किया और उन्हें लोकप्रियता भी हासिल हुई। कविता शर्मा जैसे ही बुंदेली लोक कलाकारों ने अपनी रूचि अनुसार प्रतिभा का प्रदर्शन किया और बुंदेली भाषा को सामाजिक पटल पर विशेष पहचान दी। लोकगीत में संवेदनाए, अनुभूति और अभिव्यक्ति की उद्दीप्त तीव्रता का समावेश होता है। हालांकि लोकगीत कब पहली बार गाया गया, किसने गाया या किसने परिकल्पना की होगी। यह शोध का एक अलग विषय हो सकता है। पर वह गीत जरूर अनुभूति नितांत लौकिक होगी। तभी तो कहा जाता है कि लोकगीत जीवन संस्कृति से जुड़े हैं उन्हें अलग नहीं किया जा सकता है। खेतों में काम करते हुए या मजदूरी करके लौटते हुए श्रमिक वर्ग की महिलाएं और पुरूष अपनी थकान मिटाने के लिए गाते-बजाते रहे हैं।
कविता शर्मा ने अपने बुंदेली गीतों के गायन से सभागार में उपस्थित सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। संपूर्ण सभागार करतल ध्वनि से गुंजनवान हो गया, सभागार में उपस्थित श्रोताओं ने बुंदेली लोकगीतों का साह्दय आनंद लिया।
विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ. बृजेन्द्र सिंह गौतम, चेयरमैन डॉ. पुष्पेंद्र सिंह गौतम ने शॉल श्रीफल एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर लोकगायिका कविता शर्मा को सम्मानित किया। इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के उपकुलगुरू डॉ. गिरीश त्रिपाठी, कुलसचिव विजय सिंह के अतिरिक्त विश्वविद्यालय के समस्त प्राध्यापकगण एवं विद्यार्थीगण उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रणति चतुर्वेदी एवं आभार संगीत विभाग के सहायक प्राध्यापक परशुराम अवस्थी ने व्यक्त किया।