सतना। ऐतिहासिक जगतदेव तालाब अब पूरी तरह से दलदल में बदल चुका है। जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा और प्रशासन तंत्र की अर्कमण्यता के चलते इस ऐतिहासिक धरोहर का वजूद धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है। यहां का शिव मंदिर जो शहर की आबादी का प्रमुख श्रद्धा और आस्था का केंद्र था वहां अब लोग जाने से कतराते है। श्राद्धपक्ष में यहां कभी हजारों की भीड पितरों का तर्पण करने जुटती थी लेकिन अब यहां का पानी जहां जहरीला हो चुका है वहीं खरपतवार कीचड के बीच जगह-जगह कचरों का ढेर मलवा ही दिखाई दे रहा है। यंू तो कई बार इस ऐतिहासिक धरोहर को संवारने पहल हुई लेकिन कभी यह पहल मूर्तरूप नहीं ले पाई। तालाब की मेड सहित पुष्पराज कॉलोनी की तरफ पूरी तरह तालाब का भूखंड दबंगों ने कब्जा कर इमारतें खडी कर ली। वो दिन दूर नहीं जब यह धरोहर सिर्फ किस्से-कहानियों की तरह इतिहास के पन्नों तक सिमट कर रह जाएगी। एक दशक पूर्व शुरू हुए एक हजार करोड के स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में अमौधा एवं नारायण तालाब के विकास, सौंदर्यीकरण के प्रोजेक्ट की तरह जगतदेव तालाब को ही संवारने का काम शुरू हुआ लेकिन अदालत से स्टे के कारण काम को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका। इस समय दो सौ साल प्राचीन शहर की पहचान जगतदेव तालाब की उपेक्षा के चलते लगातार जलकुंभी और अन्य खरपतवार चारों तरफ की गंदगी, कचडे के ढेर इस धरोहर को लील गए। बता दें कि 18वीं शताब्दी में जब भीषण अकाल पडा था तब जगतदेव पांडेय ने इस तालाब का निर्माण कराकर शहर की जनता को समर्पित किया था। शिव मंदिर एवं घाटों का निर्माण भी उसी दरम्यान शहर के लोगों के जन सहयोग से कराया गया था। जगतदेव तालाब कभी आस्था का मुख्य केंद्र था जहां पितृ पक्ष में सुबह से ही तर्पण करने वालों की भीड जुटती थी। आज पितृपक्ष का तीसरा दिन भी बीत गया लेकिन यहां पुरानी झलक नहीं दिखी। शहर के लोगों के लिए आबादी के बीचोंबीच होने के कारण यह तर्पण सहि अन्य श्राद्ध कार्यों के लिए सुविधाजनक भी था। यहां की गंदगी एवं दुर्गंध के कारण अब बहुत कम लोग तर्पण करने आते है। अब लोग अन्य जलाशयों या नदी में तर्पण के लिए जाने लगे हैं।