सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि वकील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में नहीं आते। उपभोक्ता अदालतों में वकीलों के खिलाफ सेवा में कमी के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। अदालत ने कहा कि वकील की सेवाओं में ग्राहक का काफी हद तक सीधा नियंत्रण होता है। वकीलों द्वारा ली गई सेवाएं व्यक्तिगत सेवा अनुबंध के तहत होंगी, जो सेवा की परिभाषा से बाहर है।

कानूनी पेशा अद्वितीय है

न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने मामल की सुनवाई की। उन्होंने कहा कि कानूनी पेशा अद्वितीय है। काम की प्रकृति विशिष्ट है। इसकी तुलना दूसरे व्यवसायों से नहीं की जा सकती। वकील से ली गई सेवा व्यक्तिगत सेवा के अनुबंध के तहत होती है। इसलिए यह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2 (42) के तहत सेवा की परिभाषा के बहिष्करणीय भाग के तहत आएगा। अधिवक्ताओं के खिलाफ सेवा में कमी का आरोप लगाने वाली शिकायत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम- 2019 के तहत सुनवाई योग्य नहीं होगी। 

इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

बार निकायों और अन्य व्यक्तियों द्वारा दायर याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया। याचिका में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के 2007 के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि वकील और उनकी सेवाएं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के दायरे में आती है।

न्याय की रक्षा के लिए निडर हों वकील

पीठ ने कहा कि कानूनी पेशा की प्रकृति वाणिज्यिक नहीं है। यह अनिवार्य रूप से एक सेवा-उन्मुख और महान पेशा है। न्याय वितरण प्रणाली में अधिवक्ताओं की भूमिका अपरिहार्य है। अधिवक्ताओं से अपेक्षा होती है कि वे न्याय की रक्षा के लिए निडर और स्वतंत्र हों। कानूनी पेशा नागरिकों के अधिकारों, कानून के शासन को कायम रखने और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अहम है। पीठ ने कहा कि लोग न्यायपालिका में विश्वास रखते हैं। माना जाता है कि वकील अभिजात वर्ग के बीच बुद्धिजीवी है तो वहीं वंचितों के बीच सामाजिक कार्यकर्ता।